श्रीमद् भगवद् गीता प्रथम अध्याय अर्जुनविषादयोग
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस: |
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् || ३८ ||
कथं न ज्ञेयमस्माभि: पापादस्मान्निवर्तितुम् |
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन || ३९ ||
yady apy ete na paśhyanti lobhopahata-chetasaḥ
kula-kṣhaya-kṛitaṁ doṣhaṁ mitra-drohe cha pātakam
kathaṁ na jñeyam asmābhiḥ pāpād asmān nivartitum
kula-kṣhaya-kṛitaṁ doṣhaṁ prapaśhyadbhir janārdana
Hindi Translation:- यधपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग से कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन ! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये ?
English Translation:- Greed has clouded the minds and overpowered the intelligence of the sons of DHRTARASHTRA and so they feel no guilt, and fail to see the sins they are commiting by betraying friends and destroying their families.
Arjuna continued:- Why should we not realize, O KRISHNA, the wrong-doings and sins that the sons of DHRTARASATRA cannot see and realize, and save ourselves from committing these sins?
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