panchatantra story in sanskrit | पंचतंत्र की कहानी संस्कृत में

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panchatantra story in sanskrit | पंचतंत्र की कहानी संस्कृत में

बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता

कस्मिंश्चित् वने खरनखरः नाम सिंहः प्रतिवसति स्म। स: कदाचित् बुभुक्षया इतस्तत: भ्रमन् आसित्।

परन्तु कमपि मृगं न प्राप्तवान्। ततः सूर्यास्तमनसमये पर्वते महतीं गुहां दृष्टवान्।

तत्र गत्वा चिन्तितवान्। “अत्र कोऽपि मृगः रात्रौ निश्चयेन आगमिष्यति।

अतः अहम् अत्रैव गुप्तः तिष्ठामि। ततः तस्याः गुहायाः निवासी दधिपुच्छः नाम शृगालः आगतवान्।

सः गुहां प्रविष्टस्य सिंहस्य पदपद्धतिं दृष्टवान्, न तु बहिः आगतस्य। ततः चिन्तितवान्।

“अहो ! किमिदम्? गुहायाः अन्तः सिंहः स्यात्।

किं करोमि? कथं जानामि?

एवं विचिन्त्य गुहायाः द्वारे स्थित्वा उच्चैः आहूतवान्। “अहो बिल ! अहो बिल !

कञ्चित् कालं तूष्णीं भूत्वा पुनः तथैव उक्तवान्। “भोः ! किमर्थं न वदसि ?

प्रतिदिनं यदा अहम् आगच्छामि तदा मया तव आह्वानं क्रियते।

त्वया च मम उत्तरं दीयते। यदि मम उत्तरं न प्रयच्छसि, तर्हि अहम् अन्यबिलं गमिष्यामि।

शृगालस्य वचनं श्रुत्वा सिंहः चिन्तितवान्। ” नूनं यदा सः आगच्छति तदा एषा गुहा प्रतिदिनम् उत्तरं ददाति।

अद्य तु मद्भयात् न वदति। अथवा साध्विदम् उच्यते-

भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिकाः क्रियाः।
प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवते्।।


अतः अहमेव तम् आह्वयामि।

तत् श्रुत्वा प्रविष्टं शृगालम् अहं भक्षयामि। तथैव सिंहेन आह्वानं कृतम्।

सिंहनादस्य प्रतिध्वनिना गुहा पूर्णा।

वने दूरे स्थिताः अन्ये मृगाः अपि भीताः अभवन्। शृगालः झटिति पलायनं कृतवान्।

अत एव उच्यते:-

अनागतं यः कुरुते स शोभते स शोच्यते यो न करोत्यनागतम् ।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता ॥


Panchatantra storie in sanskrit | चत्वारि मित्राणि

पंचतंत्र की कहानी संस्कृत में हिंदी अनुवाद के साथ

बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता – हिंदी अनुवाद

एक जंगल में खरनखर नाम का एक शेर रहता था। एक बार, वह भूख के कारण यहाँ-वहाँ घूम रहा था।

लेकिन उसे कोई जानवर नहीं मिला। सूर्यास्त तक, उसने एक पहाड़ में एक बड़ी गुफा देखी।

उसने वहाँ जाकर सोचा। कुछ जानवर रात तक यहां जरूर आएंगे।

इसलिए, मैं यहां छिपा रहूंगा। तब दधीच नाम का एक सियार, जो उस गुफा में रहता था, आया।

उसने शेर के पैरों के निशानों को देखा, गुफा के अंदर जा रहे थे लेकिन बाहर नहीं आ रहे थे। फिर उसने सोचा।

ओह! यह क्या है? गुफा के अंदर एक शेर हो सकता है। मुझे क्या करना चाहिए? मुझे कैसे पता चलेगा?

इस प्रकार सोचते हुए, गुफा के दरवाजे पर खड़े होकर उसने जोर से पुकारा। हे गुफा ! हे गुफा !

कुछ समय के लिए, वह चुप रहा, और फिर, उसने वही बात कही। हे गुफा! आप बोलते क्यों नहीं?

हर दिन, जब मैं आता हूं, तो में आपको पुकारा करता हूं। और आप मुझे जवाब देते है।

यदि आप मुझे कोई उत्तर नहीं देते हैं, तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊंगा। सियार की बातें सुनकर शेर ने सोचा।

हो सकता है, जब वह आता है, तब, यह गुफा हर दिन जवाब देती है। लेकिन आज, यह मुझसे डर के कारण नहीं बोल रही है।

अथवा ठीक ही यह कहते हैं-

‘भय से डरे हुए मन वाले लोगों के हाथ और पैर से होने वाली क्रियाएँ ठीक तरह से नहीं होती हैं और वाणी भी ठीक काम नहीं करती; कम्पन (घबराहट) भी अध्कि होता है।’


इसलिए, मैं उसे खुद आमंत्रित करूंगा। जब वह यह सुनकर अंदर प्रवेश करेगा तो मैं सियार को खा जाऊंगा।

इस प्रकार, शेर ने दहाड़ लगाई। शेर की दहाड़ की आवाज से गुफा भर गई।

यहां तक ​​कि जंगल में दूर रहने वाले अन्य जानवर भी डर गए। सियार भी भाग गया।

जो आने वाले कल का (आगे आने वाली संभावित आपदा का) उपाय करता है, वह संसार में शोभा पाता है और जो आने वाले कल का उपाय नहीं करता है (आनेवाली संभावित विपत्ति के निराकरण का उपाय नहीं करता) वह दुखी होता है। यहाँ वन में रहते मेरा बुढ़ापा आ गया (परन्तु) मेरे द्वारा (मैंने) कभी भी बिल की वाणी नहीं सुनी गई।


Panchatantra story in Sanskrit with English translation

बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता – english translation

In a forest there lived a lion named kharanakhara. Once, he was roaming here and there with hunger.

But he did not find any animal. By sunset, he saw a big cave in a mountain.

He went there and thought. Some animal will definitely come here by night.

Hence, I will stay here hidden. Then a jackal named Dadhipuccha, who lived in that cave, came.

He saw the footsteps of the lion, going into the cave, but not coming out. Then he thought.

Oh ! What is this? There might be a lion inside the cave.mWhat shall I do? How will I know?

Thinking thus, standing at the cave door, he called out aloud. O Cave ! O Cave !

For some time, he kept silent, and again, he said the same thing. O ! why do you not speak?

Every day, when I come, I call you. And you reply me.

If you do not give me a reply, I will go to another cave. On hearing the jackal’s words, the lion thought.

May be, when he comes, then, this cave replies every day. But today, it does not speak because of fear from me.

Or rightly it says-

The actions of the hands and feet of people with fear of fear are not done properly and speech also does not work properly; Vibration (nervousness) is also more.


Hence, I shall invite him myself. I shall eat the jackal when he enters hearing it.

Thus, the lion called out. The cave was filled with the sound of the lion’s roar.

Even other animals that were far away in the forest became scared. The jackal ran away at once.


One who foresees ( acts according to ) the future will succeed. One who doesn’t will regret. I have grown old living in the forest, and have never yet heard the voice of a cave.


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